और श्रद्धा जैन
जैसे गुरु मिले जिनको मैंने देखा कभी भी नहीं किन्तु उनसे ब्लागिंग /नेट पर हिंदी में लेखन के गुर सीखे. तभी समीर लालवर्ष 2009 मेरे लिए एक प्रशिक्षण वर्ष था इस वर्ष में कई ब्लॉगर को नंगी आँखों से देखने का अवसर मिला जो इ-मेल के ज़रिये फोन के ज़रिये इस उस को भड़काते नज़र आए. दो मित्रों के बीच युद्ध की स्थिति भी एक नामवर ब्लॉगर ने पैदा करा दी जबलपुर को अपमानित भी किया मेरे तथा भाई महेंद्र मिश्रा जी के बीच मतभेद पैदा कर दिए गए किन्तु माँ नर्मदा
जबलपुर ब्रिगेड पर समृद्धि की झलक देखने-मिल रही है, बावरे-फकीरा के गीत को हिंद-युग्म के पाडकास्ट प्रभाग यानी आवाज़ ने एक और स्थान दिया वहीं दूसरी और खजाना को जबलपुर ब्रिगेड में बदलने के प्रयास के बाद जो सफलता मिली उसे देखकर हौसला बढ़ा














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