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इस बीहड़ से गुज़रते मुझे बड़े ही डरावने से लगे थे
ओ समय
तुम जो प्रिया के इंतज़ार के वक्त
कितने अपने से .......?
समय तुम ही न थे जो मुझे अपमानित कर गए थे
हाँ तब जब माँ का शव लाया गया
और उभर आयीं थी
निस्तब्धाताएं एक साथ मेरे साथ तुम भी रुदन कर रहे थे
हाँ और तब भी जब
बहनों को विदा किया था !
तुम मेरे साथ ही तो थे
समय तुम मेरे साथ हर कदम हो हमकदम
प्रिय-मित्र बस एक बार हाँ एक बार मुझे
छोड़ दो अकेला
जी हाँ और रुक जाओ
कहीं आराम ही कर लो
शायद
मैं अकेले की क्षमताएं जान सकूं
एक बार अपने आप को पहचान सकूं ।
{चित्र ज्ञानदत्त जी से बिन पूछे आभार सहित }
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