Monday, April 28, 2014

पिरो गया किमाच कौन मोगरे के हार में !!


अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?
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बाग में बहार में, ,
सावनी फुहार में !
पिरो गया किमाच कौन
मोगरे के हार में !!
पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...?
********
एक गीत आस का
एक नव प्रयास सा
गीत था अगीत था !
या कोई कयास था...?
गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो...?
*********
तिमिर में खूब  रो लिये
जला सके न तुम  दिये !
दीन हीन ज़िंदगी ने
हौसले  डुबो दिये !!
बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो... ?
***********

11 comments:

Satish Saxena said...

अफ़सोस, गिरीश की कवितायें कभी पढ़ी ही नहीं , प्रभावशाली रचना , बधाई भाई !

कविता रावत said...

आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाये

कविता रावत said...

आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

कविता रावत said...


आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा सृजन...बधाई...

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Harash Mahajan said...

बहुत ही उम्दा आ0

Sudha Devrani said...

बहुत हु उत्कृष्ट लाजवाब सृजन
वाह!!!

Preeti Mishra said...

लाजवाब रचना

Truckbazi said...
This comment has been removed by the author.
Truckbazi said...

Very helpful,Thank you for this post.
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