Monday, November 29, 2010

विकलांगता : मशीनरी और समाज मिशन मोड में काम करे

मध्य-प्रदेश  में विकलांगता के परिपेक्ष्य में सचिन कुमार जैन नेमीडिय फ़ार राईट में  लिखे शोध परक आलेख में आलेख में प्रदेश की स्थिति एकदम स्पष्ट कर दी है उसी को आधार बना कर मैं एक आम नागरिक की हैसियत एवम स्वयं विकलांगता से  प्रभावित व्यक्ति के रूप अंतरआत्मा की आवाज़ पर यह आलेख  स्वर्णिम मध्य-प्रदेश की की परिकल्पना को दिशा देने के उद्येश्य से लिख रहा हूं जिसका आशय कदापि अन्यथा न लिया जावे.
विकलांगता 
विकलांगता वास्तव में एक प्रक्रिया से उत्पन्न हुई स्थिति है जिसको सामाजिक धारणायें व्यापक और भयावह रूप प्रदान करती हैं। इसकी अवधारणायें समाज पर निर्भर करती है क्योंकि इनका सीधा सम्बन्ध सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं से होता है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन अलग-अलग स्तरों पर परिभाषित करता है :-
1. अंग क्षति (Impairment) मानसिक, शारीरिक या दैहिक संरचना में किसी भी अंग का भंग, असामान्यहोना, जिसके कारण उसकी कार्यप्रक्रिया में कमी आती हो, वह अंग क्षति से जुड़ी अशक्तता होती है।
2. अशक्तता (Disability) अंग क्षति का उस स्थिति में होना जब प्रभावित व्यक्ति किसी भी काम को सामान्य प्रक्रिया में सम्पन्न न कर सके। यहां सामान्य प्रक्रिया उसे माना जाता है जिसे सामान्य व्यक्ति स्वीकार्य व्यवस्था में किसी काम को प्रक्रिया के साथ पूरा करता है।
3. असक्षमता (Handicap)  यह अंग क्षति और अशक्तता के परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति के लिये उत्पन्न हुई दुखदायी स्थिति है। इसके कारण व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका और दायित्वों का निर्वहन (आयु, लिंग, आर्थिक, सामाजिक और सास्कृतिक कारकों के फलस्वरूप) कर पाने में असक्षम हो जाता है।
विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर देने, उनके अधिकारों के संरक्षण और सहभागिता के लिये 1995 में बने अधिनियम के अनुसार जो व्यक्ति 40 फीसदी या उससे अधिक विकलांग है उसे चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा प्रमाणित किया जायेगा। इसमें दृष्टिहीनता, दृष्टिबाध्यता, श्रवण क्षमता में कमी, गति विषयन बाध्यता, है। नेशनल ट्रस्ट एक्ट, 1999 में आस्टिन, सेलेब्रल पल्सी और बहु-विकलांगता (जैसे मानसिक रोग के साथ अंधत्व) को भी इसमें शामिल कर लिया गया। 
             पोर्टल पर प्रकाशित आलेख की इस  परिभाषा से सहमत हूं  चिकित्सकीय परिभाषा भी इसी के इर्द-गिर्द है.श्री जैन के आलेख में मध्य-प्रदेश की स्थिति के सम्बंध में आंकड़े देखिये :- 
मध्यप्रदेश की स्थिति
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कराये गये विशेश सर्वेक्षण से समाज में विकलांगता के शिकार व्यक्तियों की स्थिति का एक व्यापक चित्र उभरकर आता है। मध्यप्रदेश में कुल 1131405 व्यक्ति किसी न किसी किस्म की विकलांगता के शिकार हैं। इसका मतलब यह है कि ये लोग सरकार द्वारा तय विकलांगता की परिभाषा के अन्तर्गत आते हैं। प्रदेश की इस जनसंख्या का कुछ अलग-अलग बिन्दुओं के आधार पर विश्लेषण किया जा सकता है।
  1. • प्रदेश में 44 फीसदी विकलांग व्यक्ति यानि 412404 व्यक्ति बेरोजगार हैं।
  2. • 287052 व्यक्ति दैनिक रूप से आय अर्जित करके जीवन यापन करते हैं और 281670 अपना खुद का काम करते हैं।
  3. • 1000 रूपये प्रति माह से कम कमाने वाले व्यक्तियों की संख्या 505472 है जबकि 5000 से ज्यादा आय अर्जित करने वाले की संख्या तीन प्रतिशत के आसपास है। सरकारी क्षेत्र में केवल 15955 लोग काम करते हैं।
                              राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कार्यक्रमों में विकलांगता के संदर्भ में किये जा रहे कार्यों में अधिक पार्दर्शिता और इस वर्ग के लिये कार्य-कर रही चेतना का अभाव समग्र रूप से देखा जा रहा है इसका आशय यह नहीं है कि योजनाएं एवम कार्यक्रम नहीं हैं आशय यह कि क्रियांवयन को सवेदित रूप से देखे जाने की ज़रूरत है जिसके लिये  एक "एकीकृत-सूक्ष्म-कार्ययोजना की  (कार्यक्रम-क्रियांवयन हेतु )" ज़रूरत है.जिस पर राज्य-सरकार का ध्यान जाना अब महति आवश्यक है.
"सामाजिक और तंत्र का नज़रिया"
राज्य सरकार में नियुक्त होने के लिये जब मैं लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर साक्षात्कार के लिये गया तब यही सवाल बार बार किये जा रहे थे कि :- कैसे करोगे काम....? एक अत्यधिक पढ़ा-लिखा तबका जब इस तरह की दुष्चिंता से ग्रस्त है तो आप अंदाज़ा लगा सकतें हैं कि कम पढ़ी-लिखी ग्रामीण आबादी क्या सोच और कह सकती है..? इसी तरह पदोन्नत होकर जब नवपद्स्थापना स्थान पर गया तो वहां भी कुछ ऐसे सवालों से रू-ब-रू होना पड़ा.  यानी सामाजिक सोच की दिशा सदा ही शारीरिक कमियों के प्रति नकारात्मक ही रही. मेरे एक अधिकारी-मित्र का कथन तो यहां तक था कि:-”कहां फ़ंस गए, बेहतर होता कि तुम किसी टीचिंग जाब में जाते..?
              अपाहिजों को  अच्छे लगते जो मुझसे समानता का व्यवहार करतें हैं. किंतु जो थोड़ा सा भी नकार्त्मक सोचते उनके चिंतन पर गहरी पीडा होना स्वाभाविक है. अपाहिज़ व्यक्तियों के प्रति सामाजिक धारणा को समझने के लिये उपरोक्त उदाहरण पर्याप्त हैं. यद्यपि प्रोजेक्ट इंटीग्रेटेड एजुकेशन फॉर द डिसएबल्ड एक उत्तम कोशिश है ताक़ि नज़रिया बदले समाज का ! किंतु इतना काफ़ी नहीं है. मुझे अच्छी तरह से याद है पंचायत एवम समाज कल्याण विभाग में एक श्री अग्रवाल जी हुआ करते थे जिनके दौनों हाथ के पंजे नहीं थे उनने  अपने आप विकल्प की तलाश की और वे ठूंठ हाथों में रबर बैण्ड के सहारे कलम फ़ंसा कर मोतियों समान अक्षरों में लिख लिया करते थे, हमें अपनी योग्यता अक्सर पल पल सिद्ध करनी होती है जबकि सबलांग स्वयमेव सक्षम माने जाते हैं. भले ही विकलांग व्यक्ति अधिक आउट-पुट दे.
अक्सर विकलांग-व्यक्ति को अपने आप को समाज ओर व्यवस्था के समक्ष प्रतिबध्दता प्रदर्शित करने के लिये विकल्पों पर निर्भर करना होता है एक भी विकल्प की अनुउपलब्धता विकलांग-व्यक्ति को हीनता बोध कराती है. कार्य-सफ़लता पूर्वक पूर्ण करने पर भी उठते सवालों से भी भावनाएं आहत होतीं हैं. जिनका गहरा एवं निगेटिव मनोवैज्ञानिक प्रभाव पढ़्ता है और यही प्रभाव मन के आक्रोश को उकसाता है अर्थात प्रोवोग करता है. क्या समाज कुछ ऐसा सकारात्मक चिंतन कर रहा है मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई स्थिति अभी समाज की चेतना में है. या इसे बढ़ावा दिया जा रहा है. . वर्तमान समय से बेहतर था वैदिक और प्राचीन पश्चिम क्रमश: अष्टावक्र और फ़्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट को स्वीकारा गया 
   
विकलांग व्यक्तियों के लिए राहत आयकर रियायत
विकलांग व्यक्तियों के लिए यात्रा रियायतें
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार
अधिकार और रियायतें
निःशक्तता अधिनियम, 1995 के अधीन विकलांग व्यक्तियों के अधिकार ।
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 के अधीन विकलांग व्यक्तियों के अधिकार ।
भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम, 1992 के विकलांग व्यक्तियों के अधिकार ।
मानसिक रुप से ग्रस्त विकलांग व्यक्तियों के अधिकार ।
यात्रा (विकलांग व्यक्तियों के लिए यात्रा-रियायत)
वाहन भत्ता
आयकरमेंछूट
विकलांगव्यक्तियोंके लिएनौकरियोंमेंआरक्षणऔरअन्यसुविधाएं
विकलांग व्यक्तियों के लिए वित्तीय सहायता
विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए केंद्रीय सरकार की स्कीम

 विकलांगता के शिकार लोगों के लिये सरकारों से अपेक्षा से पेश्तर समाज को समझ दारी पूर्ण चिंतन करना ज़रूरी है. वरना इस दिवस और फ़ोटो छपाऊ  समाज सेवा का मंचन तुरंत बंद कर देना चाहिये

Saturday, November 27, 2010

हरिवंशराय बच्चन जी के जन्म दिन पर

जबलपुर प्रवास के दौरान शशिन जी के कैमरे में कैद फ़ोटोज़  
हरिवंशराय बच्चन जन्म: 27 नवंबर1907
मेरे न हमारे  प्रिय कवि बच्चन जी का आज जन्म दिन है . कविता कोश ने उन पर विस्तृत सामग्री जमा कर रखी है. किंतु हिंदी विकी पर हम अधिक जानकारीयों न डाल सके. आज उनकी ही एक कविता यहां प्रस्तुत करते हुए हर्षित हूं
एकांत-संगीत
तट पर है तरुवर एकाकी,
नौका है, सागर में,
अंतरिक्ष में खग एकाकी,
तारा है, अंबर में,
भू पर वन, वारिधि पर बेड़े,
नभ में उडु खग मेला,
         नर नारी से भरे जगत में
                                                                                              कवि का हृदय अकेला!
सतरंगिनी / हरिवंशराय बच्चन (1945) हलाहल / हरिवंशराय बच्चन (1946) बंगाल का काल / हरिवंशराय बच्चन (1946) खादी के फूल / हरिवंशराय बच्चन (1948) सूत की माला / हरिवंशराय बच्चन (1948) मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन (1950) प्रणय पत्रिका / हरिवंशराय बच्चन (1955) धार के इधर उधर / हरिवंशराय बच्चन (1957) आरती और अंगारे / हरिवंशराय बच्चन (1958) बुद्ध और नाचघर / हरिवंशराय बच्चन (1958) त्रिभंगिमा / हरिवंशराय बच्चन (1961) चार खेमे चौंसठ खूंटे / हरिवंशराय बच्चन (1962) १९६२-१९६३ की रचनाएँ / हरविंशराय बच्‍चन दो चट्टानें / हरिवंशराय बच्चन (1965) बहुत दिन बीते / हरिवंशराय बच्चन (1967) कटती प्रतिमाओं की आवाज / हरिवंशराय बच्चन (1968) उभरते प्रतिमानों के रूप / हरिवंशराय बच्चन (1969) जाल समेटा / हरिवंशराय बच्चन (1973) 

Wednesday, November 24, 2010

ब्रेकिंग-न्यूज़ जीरो हास्पिटल से देर शाम डिस्चार्ज : रोहतक ब्लागर मीट की स्वादिस्ट खीर बिखरी

सुर्खियॊं मे रहने वाला शरारती बालक ज़िंदगी को जीत के आज़ वापस आ गया. मौत जिसे छूकर निकल गई हो उसे हमारा स्नेह शतायु होने का आशीर्वाद है. आते  ही फ़ोन दागा और लगा दुनिया ज़हान की याद करने... लग गया दुनियां जहान की चिंता में. ज़ीरो है जिसकी खोज भारत में ही हुई है ससुरे के बिना कोई काम नहीं चलता. आगे लगा के एक बिंदी धर दो इकनी एक दूनी दो के अर्थ बदल जाते हैं . अंक के बाद में जित्ती बढ़ाओ उत्ता (उतना )
असर दिखाता है.. ये ज़ीरो यानी महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न? स्वाथ्य-लाभ की मंगल कामना के साथ.


         यह पोस्ट किसी भी स्थिति में हैप्पी ब्लागिंग का आव्हान है न कि विवादों को हवा देने के लिए मूल पोस्ट में लेखकीय भावना को समझने का सन्देश है न कि विवाद को आगे बढ़ाना . ब्लॉगर का या सर्वाधिकार है कि वह पोस्ट में आई टिप्पणियों को स्वीकारे अथवा अस्वीकृत करे. या पोस्ट/ब्लॉग पर टिप्पणी ही ..न आने दे स्पष्ट रूप से मुझे यकीन है कि भाई ललित शर्मा और अन्य ब्लागर जो उस वक़्त मौज़ूद थे स्थिति साफ़ कर देगें .
रोहतक में सुबह का झगड़ा रात का पानी वाली कहावत के चरितार्थ होने की वज़ह से खीर कुछ खट्टी अवश्य हुई किंतु जो पहले खा चुके थे वे गूंगे की तरह  मुंह में गुड़ का स्वाद बड़े मजे से ले रहे हैं. पता नहीं क्या हुआ कि शब्दों के प्रयोग का बखेड़ा खीर के गंज से खीर बिखेर गया. बस नज़रिये की बात है.  वैसे शब्दों के साथ खिलवाड़ का हक़ तो किसी को भी नहीं किंतु मूल पोस्ट में ऐसा कुछ प्रतीत तो नहीं हुआ. फ़िर जिस भी  नज़रिये से बाद में जो भी कहा सुनी हुई उससे मीट रूपी खीर न केवल खट्टी हुई वरन बिखरे भी दी गई. ऐसा ब्लागर्स मीट में हुआ.   पंडित जी के मानस पर हुई हलचल से मेरा बायां हाथ कांप रहा था. लगा कि शायद कोई लफ़ड़ा पकड़ा गुरुदेव ने. जो ब्लाग जगत के वास्ते सुखद नहीं है. पूरा दिन सर्किट-हाउस लिखने के बाद देर रात लेपू महाराज़ से मिला तो अंदेशा सच निकला. बेहतर होगा कि हम सौजन्यता से इस विवाद का पटाक्षेप कर दें. रहा पुरुषवादी लेखन का सवाल तो हर पुरुष ब्लागर किसी माता का बेटा है, किसी नारी का पति है, किसी बिटिया का पिता है किसी बहू का ससुर बेशक अगर कोई नारी जगत के खिलाफ़ अश्लीलता उगले उसका सामूहिक विरोध  करने में हम सभी साथ होंगे पर य देखना ज़रूरी है कि क्या वास्तव में मूल पोस्ट में लेखक के मनोभाव क्या थे. सुरेश भैया और अदा जी ने जब नज़रिया रखा तो दृश्य एकदम बदला बदला प्रतीत हुआ. खैर जो भी हो रहा है उसे "अच्छा" नहीं कहा जा सकता. अब बारी है ललित भाई की कि वे खुले तौर पर "रचना" शब्द के प्रयोग पर अपनी बात रहें. रचना शब्द का प्रयोग अगर आपने आदरणीया रचना जी के लिये किया तो आप को पोस्ट विलोपित करनी ही होगी इसके लिये आवश्यक है कि आप जैसे ही यात्रा के दौरान या घर पहुंच कर जितना भी जल्द हो सके स्थिति स्पष्ट कीजिये उम्मीद है मेरा आग्रह आप अस्वीकृत न करेंगें. वैसे मुझे भरोसा है कि आप ने सदभावना से आलेखन किया होगा. और यह भी सच है कि  भौगोलिक-दूरी से सही स्थिति का आंअकल सम्भव नहीं है. फ़िर तो और भी ज़रूरी है कि आप स्वयम स्थिति स्पष्ट कर दें. यहां सवाल हिंदी ब्लागिंग का न होकर समूची महिलाओं के सम्मान का बन पड़ा है.  
  मां शारदा हर ब्लागर को सुविषय एवम शब्द चयन का सामर्थ्य दे 

Sunday, November 21, 2010

पी ए टू ऑनरेबल.........?

साभार गूगल बाबा के ज़रिये 
                                       राजा साहब अपने किलों को होटलों में बदल रहें हैं राजशाही का स्थान ले लिया लोक शाही ने यह  लोक शाही जिस  मूलाधार पर टिकी है "पी टू आनरेबुल..................." कहा जाता  है .....वे देश के लिए बेहद ज़रूरी तत्व हैं ,इस "तत्व " को कहतें हैं "पी टू आनरेबुल..................." इन की प्रजाति सचिवालयों/वरिष्ठ कार्यालयों   में पाई जाती है ये किसी माननीय जी के साथ अटैच कर दिए जाते हैं इनकी क्वालिटी ये होती है की ये सब कुछ में फिट अपन जैसे-मिसफिट .नहीं होते आवश्यकता अनुसार सिकुड़-पसर जाने वाले ये जीव ऐसे   पुर्जे  होते हैं जो फिट हो जातें हैं हर ".....जी"के साथ गोया कुण्डली का एक एक घर मिला के भेजा हो ऊपर वाले ने उनको । हर देश काल परिस्थिति के अनुसार इनका पौराणिक, प्राचीन,अर्वाचीन,अति नवीन सभी परिस्थियाँ में आवश्यक्तानुसार ऐसे जंतु को प्रभू द्वारा धारा पर भेजा जाता है. विधिवत बायोलाजिकल-पद्धति से . यानी ये जीव जन्म लेते हैं. कोई इनको अवतार न माने किंतु आचरण से अवतारी होने का आभास दिलातें हैं . इसे बिलकुल अन्यथा न लीजिये यदि मैं कहूं कि  ये अवतारी सामान होते हैं  इसके कई प्रमाण हैं  अधोगत रूप से पेश कर रहा हूँ :-
  1. अपने प्रभू से सीधा संपर्क
  2. अपनी निष्ठा से अपने प्रभू को बांधना 
  3. अपने-प्रभू के कुछेक दायित्वों को छोड़ शेष सभी दायित्वों का निर्वहन करना (छूटे दायित्व का अवसर मिल जाए तो चूकते नहीं )
  4.  प्रभू के लिए सर्व-सुविधा-संकलन संकल्प इनकी वृत्ति का मूल और आवश्यक गुण है.
  5. प्रभू आदेश का पालन नकारने वाले मानवों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई योजना बनाना एवं उसे क्रियान्वित करना. 
  6.   प्रभू के जाते ही नए अनुकूल प्रभू के लिए ईश्वर से याचना करना और सफल हो जाना 
  7. नए के समक्ष  बीते दिनों पुराने प्रभू का यशो गान न करना  
        यानी देश के लिए सबसे ज़रूरी इस वर्ग की उपादेयता को विस्मृत न किया जावे. और यू एन ओ में इस तरह के वर्ग के लिए एक दिन मनाने का प्रस्ताव रखा जावे.  
फोटो पर यदि किसी का अधिकार हो तो सूचित कीजिये .  

Wednesday, November 17, 2010

हमारे ग्रह पर चुगली एक धार्मिक कृत्य है

http://l.yimg.com/t/news/jagran/20100506/18/fea1-1_1273169117_m.jpg
जागरण से साभार
पिछले कई दिनों से अंतर्ज़ाल पर सक्रियता के कारण मेरी पृथ्वी से बाहर ग्रहों के लोगों से दोस्ती हो गई है. इनमें से एक ग्रह का सरकारी-सिस्टम पूर्णत: भारतीय सिस्टम से प्रभावित है. किंतु वहां के भर्ती एवम मूलभूत नियमों में भारतीय सिस्टम से ज़्यादा क़ानूनी होने की वज़ह से  प्रभावशाली हैं.  कारण यह है कि वहां की शैक्षिक व्यवस्था में प्राथमिक शालाऒं से ही चुगलखोरी,चापलूसी, का पाठ्यक्रम व्यवहारिक एवम प्रायोगिक स्वरूपों में लागू है.मेरा उस ग्रह का निवासी मित्र अक्सर मुझे अपने ग्रह के लोगों की बातें ऐसे बताता है गोया चुगली कर रहा हो. एक बार मैने पूछा:-यार, कारकून तुम अक्सर सबकी चुगली ही करते नज़र आते  हो ? क्या वज़ह है..?
                        कारकून:-“भैया हमारे ग्रह पर चुगली एक धार्मिक कृत्य है, जिसका पालन न करने पर हमें सिविल सेवा आचरण नियमॊं के तहत दण्डित तक किया जा सकता है सरकारी दण्ड का भय न भी हो तो हमारा भूलोक जिस ’चुगलदेव’ के धर्म का पालन कर रहा है उसके विपरीत कार्य करके हम अपना अगला जन्म नहीं बिगाड़ सकते…!”   
इस प्रकार के “धार्मिक-सह-सरकारी, दायित्व” के निर्वाह के लिये तुम लोग क्या करते हो ?
कारकून:-“कुछ नहीं,बस सब हो जाता है चुगलदेव महाराज़ की कृपा से. मां को शिशु के गर्भस्थ होते ही “चुग्ल्यन संस्कार” से गुज़रना होता है. उसकी बराबरी की बहुएं उस महिला के इर्द गिर्द बैठ कर एक से एक चुगली करतीं है.घर के आंगन में पुरुष चुगल-चालीसा का पाठ करतें हैं. पूरा घर चुगलते मुखों के कतर-ब्यों से इस कदर गूंजता है जैसे आपके देश में मच्छी-बाज़ार .
मैं:- फ़िर क्या होता है..?
कारकून:- क्या होता है, मेजवान खिलाता-पिलाता है,
मैं:- और क्या फ़िर,
कारकून:- फ़िर क्या होगा, आपके देश की तरह ही होता है. उसके खाने-खिलाने के सिस्टम पर लोग मेजबान के घर से बाहर निकलते ही चुगलियां चालू कर देते हैं. यदि ये न हुआ तो बस अपसगुन हो गया मानो. बच्चा समाज और संस्कृति के लिये  घाती माना जावेगा .
मैं:- बच्चे का क्या दोष वो तो भ्रूण होता है न इस समय..?
कारकून:- तुम्हारे देश का अभिमन्यु जब बाप की बातें गर्भ में सुन सकता है तो क्या हमारे देश का भ्रूण समाज और संस्कृति के लिये घातक प्रभाव नहीं छोड़ सकता.  
                          अभिमन्यु के बारे में उससे सुनकर अवाक हो गया था किंतु  संस्कृति के अन्तर्गृहीय-प्रभाव से हतप्रभ था. अच्छा हुआ कि नासा के किसी साईंटिस्ट से उसने दोस्ती न बनाई वरना  ओबामा प्रशासन अन्तर्गृहीय-संचरण एवम प्रभाव के विषय के ज़रिये  रास्ता निकाल पचास हज़ार अमेरिकियों के लिये जाब के जुगाड़ में निकल जाते. हमारे देश में तो पत्ता तक न हिलेगा इस कहानी के छपने के बावज़ूद. हमारा देश किसी संत-कवि पर अमल करे न करे मलूक दास के इस मत का अंधा भक्त है है कि:-“अजगर करे न चाकरी….सबके दाता राम ”-इसे हर मतावलम्बी सिरे से स्वीकारता है कि ऊपर वाला ही देता है. सभी को अत: कोई काम न करे. जैसे अजगर को मिलती है वैसे…..सबकी खुराक तय है.
मैं:-भई कारकून,ये बताओ… कि तुम्हारे गृह पर कितने देश हैं.
कारकून:-हमारा गृह केवल एक देश का गृह है . पूरी भूमि का एक मालिक है राजा भी भगवान भी कानून भी संविधान भी वो है राजा चुगलदेव .
मैं:- तो युद्ध का कोई खतरा नहीं.
कारकून:- काहे का खतरा न फौज़ न फ़ाटा,न समंदर न ज़्वार-भाटा.
             बहुत लन्बी बात हो गई  अब फ़िर मिलेंगे मुझे चुगल-सभा का न्योता मिला है. कुछ बच्चों को मैं चुगली की ट्यूशन दे रहा हूं सो अब निकलना होगा.
मैं:-अच्छा, फ़िर कल मिलते हैं
कारकून:-पक्का नहीं है कल “चुगली-योग्यता-परीक्षा” है दफ़्तर में फ़ेल हुआ तो इन्क्रीमेंट डाउन हो जाएंगें. कभी फ़ुरसत में मिलते हैं. 
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जब कारकून चला गया तो मेरे मन में उठ रही तरंगों  ने मेरी चुगली मुझसे ही शुरू कर दी.  कहने लगीं तरंगें :-"तुम,एक दम नाकारा कायर टाइप के इंसान हो देखो दुनिया में कितने भरे पड़े हैं जो कगालियों के सहारे सरकार और सरताज के से है ?"
मैं:-इसका कोई प्रमाण...?
तरंगें:-ढेरों मिल जावेंगे , अच्छा अभी गूगल पर तलाशो देखो क्या मिलेगा तुम्हें..?
मैं:- कारूं का खजाना मुझे मिलने वाला है. हा हा
तरंगें:- मूर्ख, देख तो सइ (सइ =ज़रा )  
         मित्रि फ़िर .जो मैंने देखा हक्का-वक्का होके सन्निपात की दशा में हूं. मेरी आंखैं ऐसी फ़टीं  कि  वापस पलक  झपकी न गई बहुत देर तक. मुझे  मिला ये दृश्य तो आप भी देखिये  आप भी देखिये. और
                                  चुगलखोर की मज़ार 

इस वीडिओ पर  हिन्दवी  की रपट  देखिये 
                                             चुगलखोर -की मज़ार का इतिहास
यह मजार कहीं और नहीं उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से पांच किलोमीटर दूर दतावली गांव के पास एक खेत में स्थिति है.इटावा बरेली राजमार्ग पर स्थिति यह मजार आम आदमी के लिये आज के वैज्ञानिक युग में अजीबोगरीब समझी जा रही हैं इस मजार को चुगलखोर की मजार के नाम से पुकारा जाता है. इस नाम चुगलखोर कैसे पडा इसका सही सही तो किसी को पता नहीं है लेकिन इटावा में कहा जाता है कि इटावा और अटेर के राजा के बीच युद्ध कराने को लेकर राजा को अपने एक सेवक पर शक हुआ और राजा ने इसे पकडवा कर इतना जूते और चप्पलो से पिटवाया कि उसकी मौत हो गयी बाद में इसकी याद में राजा ने एक मजार का निर्माण कराया गया जिसे आज चुगलखोर की मजार के नाम से पुकारा जाता है,राजा ने इस शख्स को चुगलखोरी की जो सजा दी उसका अनुशरण आज भी बदस्तूर जारी है,इस मार्ग से गुजरने वाला हर सख्श पांच जूते या फिर पांच चप्पल मारने की अवघारणा चली आ रही हैं,कहा जाता है ऐसा करने से यात्रा सफल होती है और वो सख्श हर अनहोनी से बच सकता है लेकिन ऐसा नहीं है कि बिना जूते या चप्पल मारने से किसी को भी नुकसान नही हुआ हैं (हिन्दविद )
                                चलिये आप चुगली के इस महत्व पूर्ण मुद्दे पर चिंतन कीजिये तब तक मैं तलाशता हूं अपने वो नाम  जिसकी चुगली करनी है कल दफ़्तर में

Monday, November 8, 2010

मानो या न मानो 02 :ज्योतिष : आप खुद परिस्थियों को भांप सकतें हैं

पिछली पोस्ट में मैंने बताया था कि पता नहीं मुझे किसने कुएं में गिर जाने से बचा लिया उस परा-शक्ति की तलाश आज भी है मुझे अपने इर्द गिर्द के वातावरण का एहसास काफी पहले हो जाता है इस बात की गवाह हैं दो  मेरे ज्योतिष विद ... जी हां इन दौनों से बार बार मैं पूछा करता कि  कि मेरी आसन्न समस्या किन कारणों से है दौनो ज्योतिष के साधक हैं किन्तु इस सवाल पर प्राय: नि:शब्द ही थे . या ऐसा ज़वाब देते  कहते थे कि नहीं सब कुछ पहले से भी उत्तम है पूरे आवेग से काम कीजिये सब कुछ आपके पक्ष में है. दूसरे के  अनुसार समस्या का हल हर चर्चा  के दौरान आज या कल में ही मिला. अंतत: जब मुझसे न रहा गया तो मैंने दौनों से ज़रा सख्त तरीका अपना कर आगे की बातें पूछी तब एक ने तो कहा:-"भाई,आपकी कुंडली में फलां फलां गृह की स्थिति है जो ऐसी स्थितियां   बना रहीं हैं. वास्तव में आपकी कुंडली त्रुटी पूर्ण बनी थी. जबकि मेरे मित्र ने कई बार उसी आधार पर अनुमान लगाए . दूसरे ज्योतिषाचार्य की स्थिति भी यही है. वे  आज तक न बता सके जबकि बार बार मैं महसूस कर रहा था तथा मुझे मालूम भी था कि मेरे इर्दगिर्द को शत्रु एकत्र हो गए हैं जो मेरा तुरंत अंत चाहते है. साथ ही मेरे कुछ मित्र (जिनसे मेरी अपेक्षाएं थीं) जानबूझकर कुछ   प्रशासनिक सूचनाएं मुझे नहीं देकर उन मित्रों का साथ दे रहे थे वे सूचनाएं मेरी कठिनाइयों का अंत सहज ही  कर देने के लिए ज़रूरी थीं किन्तु ऐसा विधाता की लेखनी से जो भी लिखा उसे भोगना ज़रूरी मानकर मैंने सब कुछ ईश्वर पर ही छोड़ दिया.मुझे हर होनी-अनहोनी का एहसास हो ही जाता है. यदि आप आत्म चिन्तन और एकाग्रता रखतें सच्ची प्रार्थना करतें हैं तो तय है कि आपके इर्द-गिर्द की आसन्न परिस्थियों का ज्ञान (पूर्वाभास) आपको आसानी से हो जावेगा. होता भी होगा. कुछ पाठकों को हुआ भी होगा .
  ज्योतिषाचार्यों के अंत:अध्ययन यानी साधना का स्तर  जितना स्तर होगा वो बस उतना ही बता सकते हैं. इसके आगे कतई नहीं. मुझे ज्योतिष पर गहन आस्था है पर केवल उस सीमा तक जहां मुझे पथ-प्रदर्शन की स्थिति साफ़ नज़र आती  आ जाये.. उससे आगे ज्योतिषविद जो उपाय बता्ते है वो सामान्य होते हैं  केवल आत्म संतुष्टि और उस स्थिति से विलग रखने के लिये. ताक़ि आप किसी गलत राह पर न निकल पड़ें . आप अपने ईष्ट की आराधना करतें तो पक्का आत्म-शक्ति में इज़ाफ़ा हो ही जाता है यही  आत्म शक्ति आपको सब कुछ बता देती है.
                                                        आज भी मुझे कई उन मित्रों पर भरोसा है जो मेरे खिलाफ किसी भी षडयंत्र का सहज ही महत्वपूर्ण भाग बन जाते हैं. एक मित्र ने तो मेरे ट्रांसफर रुकने के आदेश की कापी फ़ौरन मेरी प्रतिपक्षी को सौंप दी जिस बात का मुझे ज्ञान था. यह उसे आज़माने के लिए किया था हाथों हाथ कापी मित्र को उपलब्ध कराई ही इसी वज़ह से थी कि वो उसका ऐसा प्रयोग करे कि मुझे सत्य के परीक्षण में कठिनाई न हो.  . इसी दौरान एक और घटना घटी जिसका आभास मुझे था सारे मित्र एक प्लान बना रहे थे. वे मुझे अपनी योजना से बाहर रखना चाहते थे जबकि हमको एक काफी हाउस में मिलना था. सब के सब वहाँ पहुँच  गए हैं . एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि अब हम इस ज़गह को (काफी-हाउस ) को छोड़ रहे हैं . मैंने भी कह दिया. हाँ मै भी काफी दूर हूँ कार ट्रेफिक में फंसी है. आप लोग जा सकते हैं. जान बूझ कर मैं ज़रा विलम्ब से ही गया सारे मित्र उस स्थान पर ही थे मुझे देख कर भौंचक्के रह गए. सफाई में काफी कुछ कहा उनने पर और मैंने मानने का अभिनय भी किया. और उन सबको एक अन्य स्थान पर ले गया काफी डोसा सब हुआ. सारा मुख्यालय  से एक फेक्स मंगाया गया जिसका प्रयोग मेरे पक्ष में कोर्ट में पेश होना था. इस आदेश में कुछ मित्रों के ट्रांसफर के आदेश भी भी थे.   सभी को कापी दी गईं एक मित्र जो शुरू से मुझसे ईर्ष्या रखता है उसकी कापी उसके घर भेजी गई. मुझे मालूम था कि इस आदेश के विरुद्द कोर्ट में मित्र जावेंगे हुआ भी यही और मित्रों ने इस आधार पर स्थगन ले लिया कि सरकार ने मुझे अनुचित लाभ देने के लिये उनका (मित्रों का) ट्रान्सफ़र किया है. जबकि सब कुछ रुटीन में हुआ था. इस घटना का उल्लेख इस कारण कर रहा हूं ताक़ि आप किसी से कोई उम्मीद न पालें . जब तेज़ हवाएं चलतीं हैं तो कौन सी वस्तु आप के पास आकर गिरती है या किस वस्तु को आप खो देतें हैं इसका कोई तय शुदा गणित नहीं होता मित्रों की भीड़ में मात्र एकाध ही सच्चा मित्र होता है शेष शनै:शनै मुश्किल के दौर में दूर हो जातें हैं तो मित्रता के मामले में भी आंतरिक प्रेरणा का सहारा लेना चाहिये . किसी से भी अपेक्षाएं पालना भी तो अनुचित है
कुल मिला कर आप यदि आपमें आत्म-शक्ति है आप "अंतरसंवेदित" हैं आपकी द्रष्टि सर्वव्यापी है तो तय है कि आप बिना किसी की सहायता के अपने इर्द-गिर्द के वातावरण का अनुमापन कर पाएंगें. ज्योतिष पर विश्वास पूर्वोक्त अनुसार ही  करें तो बेहतर है यकीन कीजिये  आप खुद परिस्थियों को भांप सकतें हैं  

Tuesday, November 2, 2010

माने या न माने 01

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मुझे मौत से किसने बचाया आज़ तक सोचता हूं तब तो समझ नहीं पा रहा पर मुझे लगा कोई था ज़रूर जिसने मुझे खींचा. मुझे जीवन डान दिया.  पराशक्तियो पर कोई भी वैज्ञानिक  सिस्टम  यकीन कैसे और क्यों करेगा मुझे है किन्तु मुझे यकीन है उतना ही जितना विज्ञान के चमत्कारों पर .बात सन 1973 की है. रेलवे कालोनी में रहते थे हम  मेरे पिता जी जबलपुर के करीब शहपुरा की रेलवे स्टेशन  भिटौनी में सहायक स्टेशन मास्टर थे.मैं  शनिवार का दिन था.मै कक्षा चार में पढ़ता था, मैं और मेरा दोस्त गिरीश पाठक पास के हनुमान मंदिर में दर्शन कर के लौटे गिरीश अपने घर गया मैं भी अपने घर मेरे घर के एन बगल में रेलवे ने एक कुआँ खुदवाया था जिसका परकोटा इतना उंचा  था कि कोई बच्चा आसानी से उसे देखे न . अचानक उस कुएं में पानी बढ़ जाने की खबर सुनी कुएं का इतिहास बीस बरस पुराना था पानी तो मानो अमृत सा कभी बुखार भी आ जाए तो बस उसके ताज़े ठण्डे पानी की पट्टियां रख के बुखार उता जाता था तब तक शहपुरा बस्ती के डाक्टर निर्मल जैन काली मोटर सायकल से आ ही जाते थे थे. बीस बरसों में अचानक कुये का उफ़ान सबको चिन्तित कर गया, कौतुहल वश मैं भी उसे देखना चाह रहा था कि  पानी किस हद तक बढ़ा है ? अपरान्ह तीन सवा तीन बज रहे होंगे एकान्त जान कर मैं आ पहुंचा  कुए के पास एड़ियां उठा के पानी देखने की कोशिश की किंतु परकोटे की बाधा के चलते  कुएं का पानी नज़र न आया. सो बालसुलभ  जिज्ञासा वश गर्रे वाले हिस्से (जहां से पानी खींचा जाता है) से झांकना चाहा . और उधर गया भी. झंखा भी कि अचानक बैसाखिया खिसल गईं वहां के गीले पन की वज़ह से . शरीर का असंतुलित होना तय था हुआ भी बैसाखी सम्हालने के चक्कर में वो राड छोड़ दी जिसके सहारे सारा शरीर पानी के एन करीब था . यानी बिलकुल अगले क्षण पानी में गिर जाना लगभग तय हो गया था कि हुआ इससे उलट जाने किन बलिष्ठ हाथों ने मेरे बाल खींच कर विपरीत दिशा में ठेल दिया सर के पिछले हिस्से में मुंदी चोट आई . दर्द से चीख पडा था मैं पर सुनता कौन कोई वहा होता तब न . तब मुझे किसने बचाया कौन था वो जो मेरा खैर ख्वाह था. विज्ञान के मुताबिक़ शरीर का भारी भाग शेष हिस्से के साथ पानी में गिरना तय था किन्तु कौन सी पराशक्ति थी जो अवतरित हुई निमिष मात्र में मुझे बचा कर ओझल हो गई.  37 बरस हो गए इस घटना को उस खैर ख्वाह परा शक्ति को यदा कदा याद करता हूँ जब कोई कहता है "पराशक्तियां भ्रम हैं..!" मुझे यकीन है पराशाक्तियाँ होती हैं .मुझे उस पराशक्ति का आज भी इंतज़ार है . आभारी तो हूँ ही किन्तु उस देवता के प्रति कृतज्ञता कैसे ज्ञापित करूं ?