मुझे मौत से किसने बचाया आज़ तक सोचता हूं तब तो समझ नहीं पा रहा पर मुझे लगा कोई था ज़रूर जिसने मुझे खींचा. मुझे जीवन डान दिया. पराशक्तियो पर कोई भी वैज्ञानिक सिस्टम यकीन कैसे और क्यों करेगा मुझे है किन्तु मुझे यकीन है उतना ही जितना विज्ञान के चमत्कारों पर .बात सन 1973 की है. रेलवे कालोनी में रहते थे हम मेरे पिता जी जबलपुर के करीब शहपुरा की रेलवे स्टेशन भिटौनी में सहायक स्टेशन मास्टर थे.मैं शनिवार का दिन था.मै कक्षा चार में पढ़ता था, मैं और मेरा दोस्त गिरीश पाठक पास के हनुमान मंदिर में दर्शन कर के लौटे गिरीश अपने घर गया मैं भी अपने घर मेरे घर के एन बगल में रेलवे ने एक कुआँ खुदवाया था जिसका परकोटा इतना उंचा था कि कोई बच्चा आसानी से उसे देखे न . अचानक उस कुएं में पानी बढ़ जाने की खबर सुनी कुएं का इतिहास बीस बरस पुराना था पानी तो मानो अमृत सा कभी बुखार भी आ जाए तो बस उसके ताज़े ठण्डे पानी की पट्टियां रख के बुखार उता जाता था तब तक शहपुरा बस्ती के डाक्टर निर्मल जैन काली मोटर सायकल से आ ही जाते थे थे. बीस बरसों में अचानक कुये का उफ़ान सबको चिन्तित कर गया, कौतुहल वश मैं भी उसे देखना चाह रहा था कि पानी किस हद तक बढ़ा है ? अपरान्ह तीन सवा तीन बज रहे होंगे एकान्त जान कर मैं आ पहुंचा कुए के पास एड़ियां उठा के पानी देखने की कोशिश की किंतु परकोटे की बाधा के चलते कुएं का पानी नज़र न आया. सो बालसुलभ जिज्ञासा वश गर्रे वाले हिस्से (जहां से पानी खींचा जाता है) से झांकना चाहा . और उधर गया भी. झंखा भी कि अचानक बैसाखिया खिसल गईं वहां के गीले पन की वज़ह से . शरीर का असंतुलित होना तय था हुआ भी बैसाखी सम्हालने के चक्कर में वो राड छोड़ दी जिसके सहारे सारा शरीर पानी के एन करीब था . यानी बिलकुल अगले क्षण पानी में गिर जाना लगभग तय हो गया था कि हुआ इससे उलट जाने किन बलिष्ठ हाथों ने मेरे बाल खींच कर विपरीत दिशा में ठेल दिया सर के पिछले हिस्से में मुंदी चोट आई . दर्द से चीख पडा था मैं पर सुनता कौन कोई वहा होता तब न . तब मुझे किसने बचाया कौन था वो जो मेरा खैर ख्वाह था. विज्ञान के मुताबिक़ शरीर का भारी भाग शेष हिस्से के साथ पानी में गिरना तय था किन्तु कौन सी पराशक्ति थी जो अवतरित हुई निमिष मात्र में मुझे बचा कर ओझल हो गई. 37 बरस हो गए इस घटना को उस खैर ख्वाह परा शक्ति को यदा कदा याद करता हूँ जब कोई कहता है "पराशक्तियां भ्रम हैं..!" मुझे यकीन है पराशाक्तियाँ होती हैं .मुझे उस पराशक्ति का आज भी इंतज़ार है . आभारी तो हूँ ही किन्तु उस देवता के प्रति कृतज्ञता कैसे ज्ञापित करूं ?
(छवि साभार : न्यूज़ लाइन नेट से )
10 comments:
होती है ऐसी भी अनुभूतियाँ जो विस्मय में डाल देती है. प्रभु को नमन है.
गिरिश जी,
सब प्रभु की माया है. बस वो अपनी कृपादृष्टि बनाये रखे. मेरे भी जीवन मे कुछ ऐसी घटनाये है जो मै आज भी सोंचचा हूँ की अगर कुछ इस तरह न हुआ होता तो....
यकीं है मुझे भी...कोई तो है...मेरे पासभी है उसका अनुभव...कभी मौका मिला तो बाँटना चाहूँगी...आभारी हूँ उस शक्ति की जो हमेशा राह दिखाती है ...
आप सभी का आभार
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बडे लम्बे हाथ हैं....
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I have also experienced something similar. I believe in it.
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kisi vaigyaanik ittifaq ne bachaya hoga...uska shukriya kar lijiye :)
जब मामूली रेडियो इतनी जटिल व्यवस्था से चलता है,तो क्या यह विराट् संसार बिना किसी पूर्व-निश्चित व्यवस्था के चलता होगा?
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
sansaar mein aisi bahut si ghatnaayein ya anubhav hain jinka hamaare paas koi byakhya nahi hai par aage chalkar vigyaan inake uttar dhoondh lega jaise ab chaand par ab koi budhiya soot nahi katati ...........
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