सुर्खियॊं मे रहने वाला शरारती बालक ज़िंदगी को जीत के आज़ वापस आ गया. मौत जिसे छूकर निकल गई हो उसे हमारा स्नेह शतायु होने का आशीर्वाद है. आते ही फ़ोन दागा और लगा दुनिया ज़हान की याद करने... लग गया दुनियां जहान की चिंता में. ज़ीरो है जिसकी खोज भारत में ही हुई है ससुरे के बिना कोई काम नहीं चलता. आगे लगा के एक बिंदी धर दो इकनी एक दूनी दो के अर्थ बदल जाते हैं . अंक के बाद में जित्ती बढ़ाओ उत्ता (उतना )
असर दिखाता है.. ये ज़ीरो यानी महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न? स्वाथ्य-लाभ की मंगल कामना के साथ.
असर दिखाता है.. ये ज़ीरो यानी महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न? स्वाथ्य-लाभ की मंगल कामना के साथ.
यह पोस्ट किसी भी स्थिति में हैप्पी ब्लागिंग का आव्हान है न कि विवादों को हवा देने के लिए मूल पोस्ट में लेखकीय भावना को समझने का सन्देश है न कि विवाद को आगे बढ़ाना . ब्लॉगर का या सर्वाधिकार है कि वह पोस्ट में आई टिप्पणियों को स्वीकारे अथवा अस्वीकृत करे. या पोस्ट/ब्लॉग पर टिप्पणी ही ..न आने दे स्पष्ट रूप से मुझे यकीन है कि भाई ललित शर्मा और अन्य ब्लागर जो उस वक़्त मौज़ूद थे स्थिति साफ़ कर देगें .
रोहतक में सुबह का झगड़ा रात का पानी वाली कहावत के चरितार्थ होने की वज़ह से खीर कुछ खट्टी अवश्य हुई किंतु जो पहले खा चुके थे वे गूंगे की तरह मुंह में गुड़ का स्वाद बड़े मजे से ले रहे हैं. पता नहीं क्या हुआ कि शब्दों के प्रयोग का बखेड़ा खीर के गंज से खीर बिखेर गया. बस नज़रिये की बात है. वैसे शब्दों के साथ खिलवाड़ का हक़ तो किसी को भी नहीं किंतु मूल पोस्ट में ऐसा कुछ प्रतीत तो नहीं हुआ. फ़िर जिस भी नज़रिये से बाद में जो भी कहा सुनी हुई उससे मीट रूपी खीर न केवल खट्टी हुई वरन बिखरे भी दी गई. ऐसा ब्लागर्स मीट में हुआ. पंडित जी के मानस पर हुई हलचल से मेरा बायां हाथ कांप रहा था. लगा कि शायद कोई लफ़ड़ा पकड़ा गुरुदेव ने. जो ब्लाग जगत के वास्ते सुखद नहीं है. पूरा दिन सर्किट-हाउस लिखने के बाद देर रात लेपू महाराज़ से मिला तो अंदेशा सच निकला. बेहतर होगा कि हम सौजन्यता से इस विवाद का पटाक्षेप कर दें. रहा पुरुषवादी लेखन का सवाल तो हर पुरुष ब्लागर किसी माता का बेटा है, किसी नारी का पति है, किसी बिटिया का पिता है किसी बहू का ससुर बेशक अगर कोई नारी जगत के खिलाफ़ अश्लीलता उगले उसका सामूहिक विरोध करने में हम सभी साथ होंगे पर य देखना ज़रूरी है कि क्या वास्तव में मूल पोस्ट में लेखक के मनोभाव क्या थे. सुरेश भैया और अदा जी ने जब नज़रिया रखा तो दृश्य एकदम बदला बदला प्रतीत हुआ. खैर जो भी हो रहा है उसे "अच्छा" नहीं कहा जा सकता. अब बारी है ललित भाई की कि वे खुले तौर पर "रचना" शब्द के प्रयोग पर अपनी बात रहें. रचना शब्द का प्रयोग अगर आपने आदरणीया रचना जी के लिये किया तो आप को पोस्ट विलोपित करनी ही होगी इसके लिये आवश्यक है कि आप जैसे ही यात्रा के दौरान या घर पहुंच कर जितना भी जल्द हो सके स्थिति स्पष्ट कीजिये उम्मीद है मेरा आग्रह आप अस्वीकृत न करेंगें. वैसे मुझे भरोसा है कि आप ने सदभावना से आलेखन किया होगा. और यह भी सच है कि भौगोलिक-दूरी से सही स्थिति का आंअकल सम्भव नहीं है. फ़िर तो और भी ज़रूरी है कि आप स्वयम स्थिति स्पष्ट कर दें. यहां सवाल हिंदी ब्लागिंग का न होकर समूची महिलाओं के सम्मान का बन पड़ा है.
मां शारदा हर ब्लागर को सुविषय एवम शब्द चयन का सामर्थ्य दे
31 comments:
ललित शर्मा ने क्यों लिखा और उनका मतलब क्या था यह वे खुद बतायेंगे। शायद वे रचना शब्द का प्रयोग करते हुये शब्द सौंन्दर्य देख रहे हों लेकिन इस तरह की प्रवृत्तियां घटिया और शर्मनाक हैं जिसमें कुल मिला जुलाकार बात रचना जी के लिये अश्लील बातों तक पहुंचती है।
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मूल पोस्ट से आपत्ति होती तो दर्ज कराती
कमेंट्स मोडरेशन लगा होने के बावजूद जब छिछोरी टिप्पणियां दिखती हैं तो आपत्ति दर्ज करने का कोई मतलब नहीं होता उस पोस्ट पर , इस लिये अपने ब्लॉग पर करा दी और रात के अंधरे मै कोई करता हैं क्या सोचता हैं उसको ब्लॉग जगत पर भी देता हैं और फिर सोचता हैं ब्लोगिंग का उत्थान हो रहा हैं वाह
ललित शर्मा ने क्यों लिखा और उनका मतलब क्या था यह वे खुद बतायेंगे। शायद वे रचना शब्द का प्रयोग करते हुये शब्द सौंन्दर्य देख रहे हों लेकिन इस तरह की प्रवृत्तियां घटिया और शर्मनाक हैं जिसमें कुल मिला जुलाकार बात रचना जी के लिये अश्लील बातों तक पहुंचती है।
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महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
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महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
महफ़ूज़ जो नाम से महफ़ूज़ है तो रहेगा भी महफ़ूज़ ही न
आप भी कहाँ के बखेड़ा करने वालों में फंस गए .... इनका काम ही आग लगाना है ...
यहां केवल पहली टिप्पणी मैंने की है। इसके अलावा बाकी टिप्पणियों से म्रेरा कोई लेना-देना नहीं है।
oh mujhe lagaa kisee our ne kee is liye mad. kar dee
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