Sunday, October 10, 2010

कौन है जो

कौन है जो
आईने को आंखें तरेर रहा है
कौन है जो सब के सामने खुद को बिखेर रहा है
जो भी है एक आधा अधूरा आदमी ही तो
जिसने आज़ तक अपने सिवा किसी दो देखा नहीं
देखता भी कैसे ज्ञान के चक्षु अभी भी नहीं खुले उसके
बचपन में कुत्ते के बच्कोम को देखा था उनकी ऑंखें तो खुल जातीं थी
एक-दो दिनों में
पर...................?

2 comments:

Amit K Sagar said...

श्रीमान,
इकदम बहुत सही लिखा है.

जयकृष्ण राय तुषार said...

bahut sundar rachna badhai

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