कौन है जो
आईने को आंखें तरेर रहा है
कौन है जो सब के सामने खुद को बिखेर रहा है
जो भी है एक आधा अधूरा आदमी ही तो
जिसने आज़ तक अपने सिवा किसी दो देखा नहीं
देखता भी कैसे ज्ञान के चक्षु अभी भी नहीं खुले उसके
बचपन में कुत्ते के बच्कोम को देखा था उनकी ऑंखें तो खुल जातीं थी
एक-दो दिनों में
पर...................?
2 comments:
श्रीमान,
इकदम बहुत सही लिखा है.
bahut sundar rachna badhai
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