Monday, November 3, 2008

इंक ब्लागिंग

इंक ब्लागिंग की सचाई ये है कि तीसरा शेर सुधारने के लिए कटा पिटी करनी होती किंतु ऑन लाइन में ऐसा नहीं फ़िर कित्ते इंतजाम लगते हैं अनूप जी,है समीर भाई लिखो फोटो खींचो नीले दाँतों से ट्रांसफर करो यानी घंटे भर की मशक्कत कोई आएगा इसकी कोई गारंटी नहीं !
ग़ज़ल ख़ुद सुलगते रहे सुलगाते रहे ख़ुद को ख़ुद की अगन से जलाते रहेप्यार में डूब कर हुए एक के प्यार उनका हो पावन मनाते रहेसच से जब भी हुआ आमना-सामना बगलें झांका किए मुंह चुराते रहे । जिस जहाँ ने दिया नाम शोहरत हमें बदुआऐँ उसे ही सुनाते रहे । हम हमीं में जिए तो जिए क्या जिए रेवडी ख़ुद ही ख़ुद को खिलाते रहे ॥
{ये ग़ज़ल है या नहीं मुझे नही मालूम अत:इसे पद्य का दर्जा ही दे दीजिए यही ग़ज़ल का अनुशासन न हो इसमें तो }

2 comments:

Asha Joglekar said...

हमने तो इसे गज़ल मान कर ही पढा है और क्या खूब गज़ल है ।

Girish Kumar Billore said...

ASHA DEDI
SAADAR PRANAAM
"THANK'S"

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