Wednesday, November 17, 2010

हमारे ग्रह पर चुगली एक धार्मिक कृत्य है

http://l.yimg.com/t/news/jagran/20100506/18/fea1-1_1273169117_m.jpg
जागरण से साभार
पिछले कई दिनों से अंतर्ज़ाल पर सक्रियता के कारण मेरी पृथ्वी से बाहर ग्रहों के लोगों से दोस्ती हो गई है. इनमें से एक ग्रह का सरकारी-सिस्टम पूर्णत: भारतीय सिस्टम से प्रभावित है. किंतु वहां के भर्ती एवम मूलभूत नियमों में भारतीय सिस्टम से ज़्यादा क़ानूनी होने की वज़ह से  प्रभावशाली हैं.  कारण यह है कि वहां की शैक्षिक व्यवस्था में प्राथमिक शालाऒं से ही चुगलखोरी,चापलूसी, का पाठ्यक्रम व्यवहारिक एवम प्रायोगिक स्वरूपों में लागू है.मेरा उस ग्रह का निवासी मित्र अक्सर मुझे अपने ग्रह के लोगों की बातें ऐसे बताता है गोया चुगली कर रहा हो. एक बार मैने पूछा:-यार, कारकून तुम अक्सर सबकी चुगली ही करते नज़र आते  हो ? क्या वज़ह है..?
                        कारकून:-“भैया हमारे ग्रह पर चुगली एक धार्मिक कृत्य है, जिसका पालन न करने पर हमें सिविल सेवा आचरण नियमॊं के तहत दण्डित तक किया जा सकता है सरकारी दण्ड का भय न भी हो तो हमारा भूलोक जिस ’चुगलदेव’ के धर्म का पालन कर रहा है उसके विपरीत कार्य करके हम अपना अगला जन्म नहीं बिगाड़ सकते…!”   
इस प्रकार के “धार्मिक-सह-सरकारी, दायित्व” के निर्वाह के लिये तुम लोग क्या करते हो ?
कारकून:-“कुछ नहीं,बस सब हो जाता है चुगलदेव महाराज़ की कृपा से. मां को शिशु के गर्भस्थ होते ही “चुग्ल्यन संस्कार” से गुज़रना होता है. उसकी बराबरी की बहुएं उस महिला के इर्द गिर्द बैठ कर एक से एक चुगली करतीं है.घर के आंगन में पुरुष चुगल-चालीसा का पाठ करतें हैं. पूरा घर चुगलते मुखों के कतर-ब्यों से इस कदर गूंजता है जैसे आपके देश में मच्छी-बाज़ार .
मैं:- फ़िर क्या होता है..?
कारकून:- क्या होता है, मेजवान खिलाता-पिलाता है,
मैं:- और क्या फ़िर,
कारकून:- फ़िर क्या होगा, आपके देश की तरह ही होता है. उसके खाने-खिलाने के सिस्टम पर लोग मेजबान के घर से बाहर निकलते ही चुगलियां चालू कर देते हैं. यदि ये न हुआ तो बस अपसगुन हो गया मानो. बच्चा समाज और संस्कृति के लिये  घाती माना जावेगा .
मैं:- बच्चे का क्या दोष वो तो भ्रूण होता है न इस समय..?
कारकून:- तुम्हारे देश का अभिमन्यु जब बाप की बातें गर्भ में सुन सकता है तो क्या हमारे देश का भ्रूण समाज और संस्कृति के लिये घातक प्रभाव नहीं छोड़ सकता.  
                          अभिमन्यु के बारे में उससे सुनकर अवाक हो गया था किंतु  संस्कृति के अन्तर्गृहीय-प्रभाव से हतप्रभ था. अच्छा हुआ कि नासा के किसी साईंटिस्ट से उसने दोस्ती न बनाई वरना  ओबामा प्रशासन अन्तर्गृहीय-संचरण एवम प्रभाव के विषय के ज़रिये  रास्ता निकाल पचास हज़ार अमेरिकियों के लिये जाब के जुगाड़ में निकल जाते. हमारे देश में तो पत्ता तक न हिलेगा इस कहानी के छपने के बावज़ूद. हमारा देश किसी संत-कवि पर अमल करे न करे मलूक दास के इस मत का अंधा भक्त है है कि:-“अजगर करे न चाकरी….सबके दाता राम ”-इसे हर मतावलम्बी सिरे से स्वीकारता है कि ऊपर वाला ही देता है. सभी को अत: कोई काम न करे. जैसे अजगर को मिलती है वैसे…..सबकी खुराक तय है.
मैं:-भई कारकून,ये बताओ… कि तुम्हारे गृह पर कितने देश हैं.
कारकून:-हमारा गृह केवल एक देश का गृह है . पूरी भूमि का एक मालिक है राजा भी भगवान भी कानून भी संविधान भी वो है राजा चुगलदेव .
मैं:- तो युद्ध का कोई खतरा नहीं.
कारकून:- काहे का खतरा न फौज़ न फ़ाटा,न समंदर न ज़्वार-भाटा.
             बहुत लन्बी बात हो गई  अब फ़िर मिलेंगे मुझे चुगल-सभा का न्योता मिला है. कुछ बच्चों को मैं चुगली की ट्यूशन दे रहा हूं सो अब निकलना होगा.
मैं:-अच्छा, फ़िर कल मिलते हैं
कारकून:-पक्का नहीं है कल “चुगली-योग्यता-परीक्षा” है दफ़्तर में फ़ेल हुआ तो इन्क्रीमेंट डाउन हो जाएंगें. कभी फ़ुरसत में मिलते हैं. 
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जब कारकून चला गया तो मेरे मन में उठ रही तरंगों  ने मेरी चुगली मुझसे ही शुरू कर दी.  कहने लगीं तरंगें :-"तुम,एक दम नाकारा कायर टाइप के इंसान हो देखो दुनिया में कितने भरे पड़े हैं जो कगालियों के सहारे सरकार और सरताज के से है ?"
मैं:-इसका कोई प्रमाण...?
तरंगें:-ढेरों मिल जावेंगे , अच्छा अभी गूगल पर तलाशो देखो क्या मिलेगा तुम्हें..?
मैं:- कारूं का खजाना मुझे मिलने वाला है. हा हा
तरंगें:- मूर्ख, देख तो सइ (सइ =ज़रा )  
         मित्रि फ़िर .जो मैंने देखा हक्का-वक्का होके सन्निपात की दशा में हूं. मेरी आंखैं ऐसी फ़टीं  कि  वापस पलक  झपकी न गई बहुत देर तक. मुझे  मिला ये दृश्य तो आप भी देखिये  आप भी देखिये. और
                                  चुगलखोर की मज़ार 

इस वीडिओ पर  हिन्दवी  की रपट  देखिये 
                                             चुगलखोर -की मज़ार का इतिहास
यह मजार कहीं और नहीं उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से पांच किलोमीटर दूर दतावली गांव के पास एक खेत में स्थिति है.इटावा बरेली राजमार्ग पर स्थिति यह मजार आम आदमी के लिये आज के वैज्ञानिक युग में अजीबोगरीब समझी जा रही हैं इस मजार को चुगलखोर की मजार के नाम से पुकारा जाता है. इस नाम चुगलखोर कैसे पडा इसका सही सही तो किसी को पता नहीं है लेकिन इटावा में कहा जाता है कि इटावा और अटेर के राजा के बीच युद्ध कराने को लेकर राजा को अपने एक सेवक पर शक हुआ और राजा ने इसे पकडवा कर इतना जूते और चप्पलो से पिटवाया कि उसकी मौत हो गयी बाद में इसकी याद में राजा ने एक मजार का निर्माण कराया गया जिसे आज चुगलखोर की मजार के नाम से पुकारा जाता है,राजा ने इस शख्स को चुगलखोरी की जो सजा दी उसका अनुशरण आज भी बदस्तूर जारी है,इस मार्ग से गुजरने वाला हर सख्श पांच जूते या फिर पांच चप्पल मारने की अवघारणा चली आ रही हैं,कहा जाता है ऐसा करने से यात्रा सफल होती है और वो सख्श हर अनहोनी से बच सकता है लेकिन ऐसा नहीं है कि बिना जूते या चप्पल मारने से किसी को भी नुकसान नही हुआ हैं (हिन्दविद )
                                चलिये आप चुगली के इस महत्व पूर्ण मुद्दे पर चिंतन कीजिये तब तक मैं तलाशता हूं अपने वो नाम  जिसकी चुगली करनी है कल दफ़्तर में

7 comments:

vandana gupta said...

हा हा हा…………बेहतरीन व्यंग्य्।

समय चक्र said...

कमाल कर दिया आपने गिरीश भाई जो एरियनों से दोस्ती कर ली .... इसी लिए तो मै कहूनं आखिर आपका फोन कल दिन में क्यों बंद है

Sunil Kumar said...

चुगल खोर की माजर पहली बार सुनी , गिरीश भाई आपके व्लाग पर यह मेरी पहली हाजिरी है बहुत गहन चिंतन किया है अपने इस विषय पर|

Girish Kumar Billore said...

महेन भैया सही कहे आप अब कारकून मिल गया है सीख लूं कुछ उससे. ताक़ि लगाई-जुझाई महायग्य में
वंदना जी शुक्रिया

Girish Kumar Billore said...

अच्छा हुआ भै सुनील जी आ गए वरना आपकी चुगली ही करने वाला था
हा हा हा

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
राम त्यागी said...

आपके सहारे एलियन भी हिन्दी ब्लॉग्गिंग में उतर आये - बहुत बढ़िया आलेख गिरीश जी

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