Saturday, November 17, 2007

खबरों में बने रहिये जी

आप, आप हैं तो खबरों में बने रहना आपके लिए ज़रूरी है वर्ना आप "आप" कैसे बन पईएगा। सबको लालू जी जैसा भाग्य तो नहीं मिला जिनके पीछे -२ ख़बर चलतीं हैं आप ने देखा छट-पूजा के दिन ख़बर रटाऊ चैनल ने किचिन तक में जा कर रिपोर्टिंग कर डाली। हमारे शहर में भी अखबार निकलतें हैं ..... लोगबाग नाम छपाने / फोटो छपाने के लिए जाने कितने जतन करतें हैं सबको मालूम है। अब आभास के लिए वोटिंग केम्पेन को ही लीजिये भैया ने केमेरा देखा और लगे चिल्लाने.."हमारा नेता कैसा हों आभास जोशी जैसा हों "......? हमने कहा:-" भैये, आम चुनाव में प्रचार नहीं कर रहे हों !" एक भाई ने तो आभास के साथ १०-१२ फोटो खिंचवा लीं, और फिर भी मन नहीं भरा तो भाई भीड़ में मुंडी घुसा घुसा के खिंचवाते रहे फोटो। जब अखबार वालों ने उनको नहीं छापा तो लानत भेजते रहे सारे अखबार पर । जब शुरू-२ में केबल आया था ,तब उनका कुत्ता कमरा-मेन को भोंकता था...अब तो जैसे ही केमरामेन को देखता है "उनको" छोड़ चैनल वाले के सामने आकर दुम हिलाता है। लोग जो समाजसेवी नस्ल के जीव होते हैं ....उनकी समाज सेवा कैमरे की क्लिक के बाद हौले-२ ख़त्म हों जाती है, दिन में आठ बजे सोकर उठने वाले श्रीमान अल्ल-सुबह उठ बैठते और बीते कल की कथित समाज सेवा पर अखबार में छपी ख़बर खोजतें हैं....! हमारे मित्र की नाराज़गी थी की हमने उनका नाम अमुक इवेंट के समाचारों से विलोपित कर दिया । हम नतमस्तक हों उनसे क्षमा के याचक हैं...? कालू भाई जब असेम्बली के विधायक हुए फूलमाला से दबे जा रहे थे पर घर तक पहने रहे माला। आँख से आंसू गिरे तो चमचे कहने लगे :-"भैयाजी आपका ,इतना प्रेम देख कर भावुक हुए हैं " प्रेस ने बढचढ़ के छापा ,समाचार पढ़ के बीवी ने पूछा:- "तो रो भी पड़े थे ..?" कालू भाई बोले:-"कौन रो रहा था , वो तो उस नामुराद जनता ने जो गेंदे की माला पहनाई थी उसमें लाल चींटी थीं जो खूब काट रहीं थीं आँख से आंसू निकल पड़े "। ************************************************************************************ एक ख़बरजीवी प्राणी अपने नाम की डोलक बजाना चाहते थे . उन्होंने एक दूकान खोली है अभी-अभी ३-४ महीने पहले यश के पीछे भागने वाले इस प्राणी के बारे मैं जो जान सका उससे साबित हुआ कि "छपास "

3 comments:

विकास परिहार said...

सम्माननीय गिरीश जी,
सर्वप्रथम आपको एवं समस्त परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं। जबलपुरिया पर आपकी टिप्पणी पढ़ी लगा शायद आपको बुरा लगा। भेंट मैं भी आपसे करने का इच्छुक हूं क्यों कि अभी तक आपकी कविताओं के माध्यम से आपको जितना जान सका हूं बस उतना ही जानता हूं। नाम की मुझे कोई भूख नहीं है क्यों कि मैं कर्म प्रधानता पर ही विश्वास करता हूं।
और हाँ मेरी जिस टिप्पणी का आपको बुरा लगा है उसके लिए मैं यह बता दूं कि उसी टिप्पणी में जो पहले दो चिट्ठों की नाम दिए गए हैं वे मेरे स्वयं के हैं। और वह टिप्पणी करने का उद्देश्य मात्र यह था कि मैं जानता हूं कि वह चिट्ठा मात्र टाइमपास के लिए बनाया गया है। और जहां तक मेरा व्यक्तिगत विचार है तो मैं उस्के लिए जब हम मिलेंगे तब विस्तार से वार्तालाप करेंगे। आप वरिष्ठ हैं तजुर्बे मैं भी और उम्र मैं भी। और अभी न तो मेरे और न ही हिन्दुस्तान के संस्कारों पर इतनी धूल चढ़ी है कि हमलोग अपने बड़ों का आदर कर्ना भूल जाएं।
आशीर्वादेक्षु
विकास परिहार

कबाड़खाना

इस हम्माम मे सब....

विकास परिहार said...

मेरी इस बात को अन्यथा मत लीजिएगा परंतु मैं व्यक्तिगत तौर पर विश्वास करता हूं कि :-
दुश्मनी जम कर करो पर यह गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।

बाल भवन जबलपुर said...

विकास भाई
"असीम स्नेह"
दुश्मनी जम कर करो पर यह गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।
दुश्मनी की बात करिये ही न ये तो मेरे डिक्शनरी में है ही नहीं
"इश्क़ कीजे सरेआम खुलकर कीजे। भला पूजा भी छिप छिप कोई करता है।"
. शायद आप मुझे कितना जान सकें हैं मुझे नहीं मालूम किन्तु आपका लिखा मुझे आपकी गहराई से परिचित करा दिया है "और अभी न तो मेरे और न ही हिन्दुस्तान के संस्कारों पर इतनी धूल चढ़ी है कि हमलोग अपने बड़ों का आदर करना भूल जाएं।"
यदि में आपको कहूं की मुझे आलोचना-"आत्म-शक्ति" देतीं हैं तो आप यकीन करेंगे की नहीं...? आपने मुझसे ऐसा कुछ नहीं कहा जो मुझे आहत करे ...! किन्तु मित्र मेरी आस्तीनें उन सपोलों से भरीं हुईं हैं जो बार -२ मुझे डसतें है और मुझे जब वे नहीं डसें तो मेरा दिन सफल नहीं होता .
मेरा नवीन चिटठा http://jabalpursamachar.blogspot.com/2007/11/blog-post_16.html इसी पीडा का चित्र है .