Monday, October 22, 2007

दशहरा यूनुस भाई के नाम पाती

http://radiovani.blogspot.com/ यूनुस --दमोह जबलपुर के बीच मुझे ...हाँ आपको भी दूरी लगती न होगी आपने जबलपुर-के दशहरे का ज़िक्र कर दूरी और भी काम कर दी है आपने लिखा है की -" आज दशहरा है ।मैं दो दिन पहले ही जबलपुर से लौटा हूं । दुर्गोत्‍सव की छटा जबलपुर में देखते ही बनती है । इस बार जबलपुर में घूम घूमकर दुर्गोत्‍सव देखा और पुराने दिनों को याद किया । सबसे अच्‍छा लगा सिद्धिबाला बोस बांगला लाईब्रेरी के प्रांगण में जाकर दुर्गा प्रतिमा को देखने में । यही वो पंडाल है जहां मैंने बंगाल के कई लोकप्रिय कलाकारों के बाउल गीत सुने हैं । बंगाल की संस्‍कृति की अनमोल झांकी देखने मिलती है वहां । इसके अलावा गोविंदगंज रामलीला जो तकरीबन डेढ़ सौ सालों से जबलपुर का गौरव रही है, उसके मंच को देखकर भी अच्‍छा लगा ।"यूनुस जी जबलपुर के नज़दीकी ग्राम्यांचालों की कृषक टोलियाँ आया करतीं थी म्यूनिसपल तीन पत्ती चौक से हनुमानताल तक जाने वाली प्रतिमाएं आज भी उसी तरह निकलतीं हैं ..गढ़ा का जलूस तो अगले दिन ही निकलेगा पर अब.. फर्क ये है कि ग्राम्यांचलों के किसान परिवार अब अपने शहरी रिश्तेदारों के घर रुकते नहीं हैं... बाइक-और ट्रेक्टरों से वापस हो जाते हैं . हाँ एक और बात जबलपुर के बेटे "आभास जोशी" ने भोपाल दौरे पर जो पाती शहर वासियों के नाम दशहरे के अवसर पर भेजी थी अखबारों ने अपने-अपने अंदाज़ में छापी तो जबलपुर वासी पीछे क्यों रहते आनन फानन पंकज विद्यार्थी और जितेन्द्र चौबे ने ६ घंटे के भीतर आभास का बेहतरीन पोस्टर ऑटो पर लगा कर श्याम बैंड के साथ जनमेदनी के बीच रवाना कर दिया ..... जबलपुर आज भी जबलपुर है लोग जिसे प्यार करतें हैं दिल से प्यार करतें हैं श्याम-टाकीज़ यानी मालवीय-चौक पे तो अचानक २०० युवक एक समूह में जमा हो गए जो पुलिस की टोही निगाहों से बच नहीं सके पता साजी करते पुलिस वालों के पूछे जाने पर युवक बोले :-"सर, आप भी कीजिए न आप भी एक "एस०एम०एस०" आभास को अपने शहर का बेटा है वाह.....जबलपुर....!!

1 comment:

Yunus Khan said...

सही कहा आपने । जबलपुर जिसे प्‍यार करता है जुनून की हद तक करता है ।
अगली जबलपुर यात्रा में आपसे जरूर मुलाकात होगी ।

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