काम का दबाव परिजनो फ़ुरसतिया जी जैसे वरिष्ट मित्र का नगरागमन सूचना समय पर मिली फ़िर भी मैं फ़ुरसतिया जी से मुलाक़ात न कर सका.उछाह था आज़ भेंट हो ही जावेगी. किंतु क्या करें विधाता का लिखा मेरे हाथों कैसे फ़िरता. बवाल ने कहा था:-"महाराज़, तैयार रहियो टीक 6:30 पे आ जाऊंगा " अपन मिल आते हैं. घर पर हम भी करवा-चौथी चांद की प्रतीक्षा रत आगे से पीछे पीछे से आगे गैलरी से झांकते रहे साढे सात बज गये मियां बवाल को चार-पांच फ़ोन दागे सब के सब मिस काल में चले गए. आनन फ़ानन आटो बुलाया आटो आते ही बस बिना किसी सब्र के निकल पड़े हम . घर से मुख्य रेलवे स्टेशन का रास्ता तय करने में आधा-घण्टा लगता है . आटो रसल चौक पर लगे जाम में फ़ंसा घड़ी की एक एक सुई मुझे हताश कर रही थी. जैसे तैसे स्टेशन पहुंच गया. हांफ़ते हांफ़ते प्लेट फ़ार्म पर दाखिल हुआ तब तक ट्रेन ने सरकना शुरु कर दिया. स्टेशन-अधीक्षक विरहा जी बोले :- पप्पू भैया , कहा जा रहे हैं. ?
फ़ुसतिया जी से मिलने आया था आदि इत्यादी बात चीत के बाद चाय पानी पीकर घर आया तो सिवानी बिटिया बोली :- हर समय हड़बड़ाते हो पापा फ़ोन तो मत भूला करिये...? कोई शुक्ला अंकल का फ़ोन आया था.