Tuesday, October 14, 2008

सुनो समय

इस बीहड़ से गुज़रते मुझे बड़े ही डरावने से लगे थे समय तुम जो प्रिया के इंतज़ार के वक्त कितने अपने से .......? समय तुम ही थे जो मुझे अपमानित कर गए थे हाँ तब जब माँ का शव लाया गया और उभर आयीं थी निस्तब्धाताएं एक साथ मेरे साथ तुम भी रुदन कर रहे थे हाँ और तब भी जब बहनों को विदा किया था ! तुम मेरे साथ ही तो थे समय तुम मेरे साथ हर कदम हो हमकदम प्रिय-मित्र बस एक बार हाँ एक बार मुझे छोड़ दो अकेला जी हाँ और रुक जाओ कहीं आराम ही कर लो शायद मैं अकेले की क्षमताएं जान सकूं एक बार अपने आप को पहचान सकूं{चित्र ज्ञानदत्त जी से बिन पूछे आभार सहित }

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