नाम : गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
जन्म-तिथि:-29/11/1962
माँ:-स्व० सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे
पिता:-काशीनाथ बिल्लोरे
शिक्षा:-एम० कॉम० एल० एल-बी०,
जीविका:-मध्य प्रदेश सरकार में बाल-विकास परियोजना अधिकारी
अन्य:-
[०१]विद्यार्थी जीवन में १५० से अधिक वाद-विवाद,भाषण प्रतियोगिताओं में प्रथम तीन स्थानों पर
[०२]छात्रसंघों में सांस्कृतिक,साहित्यिक सचिव, विधि स्नातक पाठ्य-क्रम में संयुक्त-सचिव,एवं सचिव
निर्वाचित
[०३] मिलन,पाथेय,कहानी-मंच,पाठक मंच, रचना,हिन्दी-मंच-भारती,अरुणिमा,मध्य-प्रदेश लेखक संघ से सक्रीय
जुडाव,
[०४]साहित्यिक सांस्कृतिक प्रतिभाओं के प्रोत्साहन में अवदान जारी
[०५] कृत्य १.सर्किट हाउस उपन्यास , {प्रकाशन रिटायर होने के बाद}
२.नर्मदा अमृत-वाणी {रवींद्र शर्मा} एवं बावरे-फकीरा {आभास जोशी} एलबम
३.मूल विधा :- गीत,कहानी,और अब ब्लागिंग पिछले कुछ दिनो से
,
"आत्म कथ्य:-पोलियो के शिकार बच्चों और उनके अभिभावकों को बता देता हूँ की आत्म शक्ति
हताशा और कुंठा की समापक होती हैं "
दुनिया का विकलांगता से प्रति नज़रिया बदल देना चाहता हूँ कठिन है फिर भी कोशिश में हर्ज़
क्या है.
सम्पर्क:- ९६९/ए-२,
गेट न० ०४
जबलपुर म०प्र०
फोन :-०७६१ ४०८२५९३
०९९२६४७१०७२
०९४२४३५८१६७
girishbillore@gmail.com
A TRIBUTE TO SHIRDEE SAI BABADEVOTIONAL ALBUM "BAWARE FAQEERA" VOICE :- *ABHAS JOSHI {Mumbai/Jabalpur} *SANDEEPA PARE {Bhopal} MUSIC:- *SHREYASH JOSHI { Mumbai/Jabalpur } LYRICS:- *GIRISH BILLORE ;MUKUL (Jabalpur) FOR FURTHER DETAILS & YOUR SUGESSTIONS CONTACT [1] girishbillore@gmail.com [2] girish_billore@rediffmail.com [3] PHONE 09479756905 pl send crossed cheque of Rs.60/-(Rs.50 +Rs. 10/) for one CD to Savysachi Kala Group 969/A-2,Gate No.04 Jabalpur MADHY-PRADESH,INDIA
Wednesday, November 28, 2007
अमिताभ बच्चन से जलता हूँ मैं...?
जी हाँ ... सच है अमित जी से ईर्ष्या होंने लगी है मुझको , ऐश्वर्या के लिए यदि वे मन्नत भी मानतें है तो रोजिये उनको घेरे रहतें है । फिर एक पंडित के सहारे विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित कर देतें हैं ।
यहाँ हम हैं कि कितने भी सदकर्म कर लें खबरी भाई हमारी ओर केमरा नहीं घुमाते । घुमाएंगे क्यों कर हम कोई अमित थोड़े न हैं जो हमें कोई पूछेगा...?
भाई...! हमारे शहर के लोग हमको पहचानतें है इतना ही बहुत है । हम ठहरे सरकारी, आदमी वो हैं व्यापारी काहे को उनकी नज़र हम पे पड़ेगी । अब आप सोच रहें होंगे कि हमको दिखास का रोग लग गया है ये बात नहीं है भाई ! हमारी सोच है कि जनता को क्या दे रहे हैं ये चेनल वाले ... अगर ये आज-तक वाले हमारे भाई सा'ब साहित्य के पुरोधा "बच्चन जी " पे ही कुछ दिखा देते तो शायद उनका चेनल सही दिशा में कुछ करता नज़र आता हमको । इन बेचारों क पास विषय गोया चुक गए लगते है .... तभी तो अपने "प्रभू जी, राखी सावंत से शातिराना तरीके से सिलिकान के.... के बारे में पूछ ही लेतें है "
कभी गेरे जी कभी ऐरेगैरे जी को ख़बर बना के पेश करने की आदत का मतलब टी०आर०पी॰ से सुसंगत है ।
लेकिन मेरी १० साल की बिटिया ने ज्यों ही अमिताभ की भक्ति का समाचार इस चेनल पर पाया उसी भगवान की सौगंध जिसकी पादुका पूजन अमित कर रह थे बिटिया ने झट डिस्कवरी चेनल लगा लिया ।
प्रभू ..... आपकी महिमा अब १० बरस वालों को भी मालूम हों चुकी है अब तो समझ जाओ भैये ...!
न समझो तो मुझे क्या आपसे झगडा थोड़े करना है हमको , टी० वी० बंद करना तो हमारे ही हाथ में है ।
Wednesday, November 21, 2007
मीनाक्षी जी भी खोज लाती हैं ये :-
"प्रेम ही सत्य है": मृत्यु का स्वागत करता 46 साल का प्रोफेसर(Dying Professor's Last Lecture)
Saturday, November 17, 2007
खबरों में बने रहिये जी
आप, आप हैं तो खबरों में बने रहना आपके लिए ज़रूरी है वर्ना आप "आप" कैसे बन पईएगा। सबको लालू जी जैसा भाग्य तो नहीं मिला जिनके पीछे -२ ख़बर चलतीं हैं आप ने देखा छट-पूजा के दिन ख़बर रटाऊ चैनल ने किचिन तक में जा कर रिपोर्टिंग कर डाली।
हमारे शहर में भी अखबार निकलतें हैं ..... लोगबाग नाम छपाने / फोटो छपाने के लिए जाने कितने जतन करतें हैं सबको मालूम है। अब आभास के लिए वोटिंग केम्पेन को ही लीजिये भैया ने केमेरा देखा और लगे चिल्लाने.."हमारा नेता कैसा हों आभास जोशी जैसा हों "......?
हमने कहा:-" भैये, आम चुनाव में प्रचार नहीं कर रहे हों !"
एक भाई ने तो आभास के साथ १०-१२ फोटो खिंचवा लीं, और फिर भी मन नहीं भरा तो भाई भीड़ में मुंडी घुसा घुसा के खिंचवाते रहे फोटो। जब अखबार वालों ने उनको नहीं छापा तो लानत भेजते रहे सारे अखबार पर ।
जब शुरू-२ में केबल आया था ,तब उनका कुत्ता कमरा-मेन को भोंकता था...अब तो जैसे ही केमरामेन को देखता है "उनको" छोड़ चैनल वाले के सामने आकर दुम हिलाता है।
लोग जो समाजसेवी नस्ल के जीव होते हैं ....उनकी समाज सेवा कैमरे की क्लिक के बाद हौले-२ ख़त्म हों जाती है, दिन में आठ बजे सोकर उठने वाले श्रीमान अल्ल-सुबह उठ बैठते और बीते कल की कथित समाज सेवा पर अखबार में छपी ख़बर खोजतें हैं....!
हमारे मित्र की नाराज़गी थी की हमने उनका नाम अमुक इवेंट के समाचारों से विलोपित कर दिया । हम नतमस्तक हों उनसे क्षमा के याचक हैं...?
कालू भाई जब असेम्बली के विधायक हुए फूलमाला से दबे जा रहे थे पर घर तक पहने रहे माला। आँख से आंसू गिरे तो चमचे कहने लगे :-"भैयाजी आपका ,इतना प्रेम देख कर भावुक हुए हैं "
प्रेस ने बढचढ़ के छापा ,समाचार पढ़ के बीवी ने पूछा:- "तो रो भी पड़े थे ..?"
कालू भाई बोले:-"कौन रो रहा था , वो तो उस नामुराद जनता ने जो गेंदे की माला पहनाई थी उसमें लाल चींटी थीं जो खूब काट रहीं थीं आँख से आंसू निकल पड़े "।
************************************************************************************
एक ख़बरजीवी प्राणी अपने नाम की डोलक बजाना चाहते थे . उन्होंने एक दूकान खोली है अभी-अभी ३-४ महीने पहले यश के पीछे भागने वाले इस प्राणी के बारे मैं जो जान सका उससे साबित हुआ कि "छपास "
Tuesday, November 13, 2007
आत्महत्या क्यों न ......?
"मैं आत्म हत्या क्यों न करलूं ?
आईये, हम इस सोच की पड़ताल करें कि क्यों आता है ये विचार मन में....? आम जिन्दगी का यह एक सहज मुद्दा है। खुशी,प्रेम,क्रोध,घृणा की तरह पलायन वादी भाव भी मन के अन्दर सोया रहता है। इस भाव के साथ लिपटी होती है एक सोच आत्महत्या की जो पल भर में घटना बन जाती है, मनोविज्ञानियों का नज़रिया बेशक मेरी समझ से क़रीब ही होगा ।
गहरे अवसाद से सराबोर होते ही जीवन में वो सोच जन्म ले ही लेती है ।
इस पड़ताल में मैं सबसे पहले खुद को पेश करने कि इजाज़त मांगता हूँ:-
"बचपन में एक बार मुझे मेरी गायों के रेल में कट जाने से इतनी हताशा हुयी थी कि मैनें सोचा कि अब दुनियाँ में सब कुछ ख़त्म सा हों गया वो सीधी साधी कत्थई गाय जिसकी तीन पीड़ी हमारे परिवार की सदस्य थीं ,जी हाँ वही जिसके पेट से बछड़ा पूरा का पूरा दुनियाँ मी कुछ पल के लिए आया और गया" की मौत मेरे जीवन की सर्वोच्च पराजय लगी और मुझे जीवन में कोई सार सूझ न रहा था , तब ख्याल आया कि मैं क्यों जिंदा हूँ ।
दूसरे ही पल जीवन में कुछ सुनहरी किरणें दिखाई दीं ।
पलायनी सोच को विराम लग गया।
***********************************************************************************
ये सोच हर जीवन के साथ सुप्तरूप से रहती है।इसे हवा न मिले इसके लिए ज़रूर है ....आत्म-चिंतन को आध्यात्मिक आधार दिया जाये।अध्यात्म नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त या नगण्य कर देता है। इसका उदाहरण देखिये :-
"प्रेम में असफल सुशील देर तक रेल स्टेशन पर गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था बेमन से इलाहाबाद का टिकट भी ले लिया सोच भी साथ थी आत्म हत्या की किन्तु अध्यात्म आधारित वैचारिक धरातल होने के कारण सुशील ने प्रयाग की गाड़ी पकड़ी कुछ दिन बाद लौट भी आया और अपने व्यक्तित्व को वैचारिक निखार देकर जब मुझसे मिला तो सहज ही कहां था उसने-"भैया,जीवन तो अब शुरू हुआ है"
"कैसे....?"
"मैं असफलता से डिप्रेशन में आ गया था सोच आत्म हत्या की थी लेकिन जैसे ही मैंने सोचा कि मुझे ईश्वर ने जिस काम के लिए भेजा है वो केवल नारी से प्रेम कर जीवन सहज जीना नही है मुझे कुछ और करना है "
सुशील अब सफल अधिकारी है उसके साथ वही जीवन साथी है जिसने उसे नकार दिया था।
*********************************************************************************
समय की रफ़्तार ने उसे समझाया तो था किन्तु समय के संदेशे को वो बांच नहीं पाया । सुशील पत्नी ,
सहज जीवन,ऊँचे दर्जे की सफलता थी उसके साथ। वो था अपनी मुश्किलों से बेखबर ।
समय धीरे-२ उसे सचाई के पास ले ही आया पत्नी के चरित्र का उदघाटन हुआ , उसकी सहचरी पत्नी उसकी नहीं थी। हतास वो सीधे मौत की राह चल पडा। किन्तु समझ इतनी ज़रूर दिखाई चलो पत्नी से बात की जाये किसी साजिश की शिकार तो नहीं थी वो। शक सही निकला कालेज के समय की भूल का परिणाम भोग रही जान्हवी फ़ूट पड़ी , याद दिलाये वो पल जब उसने बतानी चाही थी मज़बूरी किन्तु हवा के घोडे पर सवार था सुन न सका था , भूल के एहसास ने उसे मज़बूत बना ही दिया । पत्नी की बेचारगी का संबल बना वो . नहीं तो शायद दो ज़िंदगियाँ ...............
**********************************************************************************
मेरे ख़याल से जितनी तेज़ी और आवेग से विध्वंसक-भाव मष्तिष्क में आतें हैं उतनी तेज होती है रक्षात्मक-भाव जो एक कवच सा बना देता है यह सब इतनी तेज़ी से होता है कि समझ पाना कठिन होता है । शरीर की रक्त वाहनियों में तीव्र संचार मष्तिष्क को विचलित कर देता है । हम सकारात्मक विचारों को बेजा मान बैठतें है। और लगा देते हैं छलाँग कुएँ/रेल की पटरी के आगे ...........
" आप क्या सोचतें हैं ......मुझे बताइये ज़रूर ...... वक़्त निकालकर !"
साकेत
आपका लिखा हुआ पढ़ कर लगता है कि आपने जीवन को काफी करीब से देखा है मैं आपके मत से पूरी तरह सहमत हूँ मैं एक तथ्य और जोड़ना चाहूँगा इस संदर्भ में....मनुष्य को जीवन के पीछे चलना चाहिए, जीव के पीछे नहीं जीव के पीछे दौडने वाला बड़े बड़े ऐश्वर्य, राष्ट्र चमत्कार एवं अन्य भौतिकवादी वस्तुओं से प्रभावित होकर जीवन से हाथ धो बैठता है। जीवन के पीछे चलने वाला कभी उसके रहस्यों से अनभिज्ञ नहीं होता।
भाई साकेत की बात पर मेरी टिप्पणी "जी,हाँ सत्य है, हमारे देश में ही नहीं समूचे विश्व में यही स्थिति है......अध्यात्म के बगैर का जीवन जीना बिना रीड़ का जन्तु ही तो है...?आप देखिये आम जीवन "सिद्धांत-बगैर जीते लोग,पल-पल बदलतीं निष्ठाएं,दोगला आचरण, कमज़ोर का दमन, जैसी बातों की प्रतिक्रिया है "आत्महत्या"....अगर अध्यात्मिकता का आभाव है तो हताशा के सैलाब में आत्महत्या को चुनना स्वाभाविक है....!"
और आप क्या राय देंगें विनत-प्रतीक्षारत
मीनाक्षी जी भी खोज लाती हैं ये :-"प्रेम ही सत्य है": मृत्यु का स्वागत करता 46 साल का प्रोफेसर(Dying Professor's Last Lecture)
Tuesday, November 6, 2007
Saturday, November 3, 2007
Subscribe to:
Posts (Atom)