Tuesday, November 29, 2011

आप की सद भावनाओं की बदौलत शिखर समतल और सब कुछ नापता हूं

आप की सद भावनाओं की बदौलत 
शिखर समतल और सब कुछ नापता हूं
आपने ही दी है मुझको  दिव्य-दृष्टि
राह की अंगड़ाईयों को मैं भांपता हूं.
शोक जब जब घना छाया पंथ तब तब  नया पाया
वेदना ने सर उठाया, तभी मैने गीत एक गीत गाया
बसे आके आस्तीन में मेरे कितने उन सभी को जानता पहचानता हूं..!!

जारी........

3 comments:

अनुपमा पाठक said...

वेदना का गीत भी सुखद अनुभूति है!

celebrate life!!!
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

हर नया दिन आत्म विकास की ओर ...
--
गिरीश जी,
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई !!

Satish Saxena said...

बहुत खूब !

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