आप की सद भावनाओं की बदौलत
शिखर समतल और सब कुछ नापता हूं
आपने ही दी है मुझको दिव्य-दृष्टि
राह की अंगड़ाईयों को मैं भांपता हूं.
शोक जब जब घना छाया पंथ तब तब नया पाया
वेदना ने सर उठाया, तभी मैने गीत एक गीत गाया
बसे आके आस्तीन में मेरे कितने उन सभी को जानता पहचानता हूं..!!
जारी........
शिखर समतल और सब कुछ नापता हूं
आपने ही दी है मुझको दिव्य-दृष्टि
राह की अंगड़ाईयों को मैं भांपता हूं.
शोक जब जब घना छाया पंथ तब तब नया पाया
वेदना ने सर उठाया, तभी मैने गीत एक गीत गाया
बसे आके आस्तीन में मेरे कितने उन सभी को जानता पहचानता हूं..!!
जारी........